उत्तराखंड में जातीय जनगणना को लेकर तैयारियां शुरू, हिमाच्छादित क्षेत्रों को दी जाएगी प्राथमिकता

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देहरादून/हल्द्वानी। भारत में आजादी के बाद पहली बार जातीय जनगणना होने जा रही है। यह जनगणना दो चरणों में कराई जा रही है। केन्द्र सरकार उत्तराखंड सहित चार पहाड़ी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और लद्दाख से इसकी शुरूआत करेगी। यहां जनगणना 1 अक्टूबर 2026 से होगी शुरू होगी। जनसंख्या गणना के साथ ही कि जातियों की गणना भी जाएगी।
जातीय जनगणना को लेकर उत्तराखंड में भी तैयारियों शुरू हो गई हैं। प्रदेश में भी दो चरणों में जातीय जनगणना कराई जाएगी। पहले चरण में हिमाच्छादित क्षेत्रों (वह क्षेत्र जहां लंबे समय तक बर्फ रहती है) से जनगणना की शुरूआत की जाएगी। सभव है कि गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसी नगर पंचायतों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही जनपद पिथौरागढ़ के दारमा और व्यास घाटी सहित राज्य अन्य हिमाच्छादित क्षेत्रों का चयन किया जा रहा है।
गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ क्षेत्रों में कपाट बंद होने के बाद यहां के लोग निचले इलाकों में चले जाते हैं। जिस कारण यहां नगर पंचायत छह माह के लिए होती है। जिस कारण जातीय जनगणना में दोहराव की स्थिति ना हो इसके लिए यहां पहले जनगणना की जाएगी। इसके अलावा पहले चरण की जनगणना को चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा में भी ऐसे क्षेत्र चिह्नित किए जा रहे हैं। इस संबंध में जल्द ही जनगणना निदेशालय विस्तृत प्रस्ताव शासन को भेजेगा, जिसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखंड में पहले चरण की जनगणना 11 सितंबर, 2026 से 30 सितंबर, 2026 तक चलेगी। जबकि दूसरा चरण नौ फरवरी, 2027 से शुरू होकर 28 फरवरी तक चलेगा। जनगणना के लिए करीब 28 से 30 हजार कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ने की संभावना है। गृह मंत्रालय भारत में जनगणना की अधिसूचना 16 जून 2025 को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित की संभावना है। भारत में जनगणना का दूसरा चरण 1 मार्च 2027 से शुरू होगा।
दरअसल 30 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जनगणना के साथ जातियों की गणना को भी शामिल करने का निर्णय लिया। कैबिनेट के इस फैसले की घोषणा केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की। जातीय जनगणन से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान होगी, जिससे उन्हें सशक्तिकरण की योजनाओं में मदद मिलेगी।
भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। उस समय भारत की जनसंख्या 25.38 करोड़ थी। हालांकि 1941 में जातीय आंकड़े जुटाए गए लेकिन इनको सार्वजनिक नहीं किया गया। उस समय सरकार का मानना था कि जातियों की गणना से समाज विभाजित होगा और राष्ट्रीय एकता कमजोर होगी।